Reported By : Mohammad Sartaj Alam
Published On : March 22, 2020
शाहीनबाग शुरू होने के बाद देश भर में कई दर्जन मैदानों में चल रहे CAA, NRC, NPR के विरुद्ध चल रहे प्रदर्शन ने शाहीन बाग़ का रूप धर लिया। लखनऊ को ही ले लीजिए जहां पिछले 2 महीनों से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शहर की महिलाऐं प्रदर्शन कर रही हैं। ज्ञात हो कि शहर के पुराने इलाके हुसैनाबाद में 17 जनवरी की दोपहर करीब 3 बजे 25-30 औरतों ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया था। जिसे बंद करवाने के लिए हर नाकाम कोशिश के बाद योगी सरकार अब कोरोना वायरस के बहाने धरना खत्म करवाने पर आत्मदाह है।
हमारे लिए आगे कुआं और पीछे खाई: लखनऊ की प्रदर्शनकारी महिलाऐं
प्रदर्शनकारी महिलों का कहना है कि “हमारे लिए सबसे बड़ी कोरोना खाकी वर्दी (पुलिस) है जो हम महिलाओं को दो महीने से प्रताड़ित कर रही है।” कारवां में छापी रिपोर्ट के अनुसार महिलों का कहना है कि “हमारे लिए आगे कुआं और पीछे खाई जैसी हालत है। इसलिए आंदोलन खत्म करने का सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि कोरोना वायरस से तो सावधानी बरत कर बचा जा सकता है लेकिन सीएए के चलते सारा जीवन डिटेंशन केंद्र में गुज़ारना पड़ेगा।” आंदोलनकारी महिलों का मैंने है कि “यदि सरकार को हमारी चिंता है तो सीएए वापस ले जिससे धरना खुद ही समाप्त हो जाएगा।”
सरकार फ़िक्रमंद है तो प्रदर्शन स्थल पर मास्क और सैनिटाइजर उपलब्ध करे
घंटाघर की महिलों का कहना है कि “यदि सरकार को औरतों और स्वास्थ्य सेवाओं की इतना ही फिक्र है तो प्रदर्शन स्थल पर मास्क और सैनिटाइजर आदि उपलब्ध करवा दे।” उन सभी का कहना है कि “वायरस तो वक्त के साथ खत्म हो जाएगा और सावधानी अपना कर इससे बचा भी जा सकता है। लेकिन यह आंदोलन देश के संविधान को बचाने और आगे आने वाली नस्लों के लिए है इस लिए इसको बंद नहीं किया जा सकता।”
घंटाघर प्रांगण खाली करवाने की हो चुकी है पहले भी कोशिश
राज्य प्रशासन तमाम तरह के दबावों के बावजूद प्रदर्शनकारी औरतों से घंटाघर प्रांगण खाली करवा पाने में असफल रहा। ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की धमकियों और प्रशासन के दबाव के बीच लखनऊ में सीएए के खिलाफ दो महीने से धरना जारी है। प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारियों और मुकदमों से भी औरतों के हौसलों में कमी नहीं आई और वह सभी CAA के वापस न होने तक प्रदर्शन खत्म करने को राज़ी नहीं हैं। इस दौरान प्रशासन और कुछ महिलाओं के बीच हुई बातचीत विफल ही रही।
पुलिस ने सर्दी की ठंडी रात में आंदोलनकारियों के कम्बल ज़ब्त कर लिए थे
17 जनवरी को जब प्रशासन तमाम कोशिशों के बादजूद घंटाघर पर जमा औरतों को नहीं हटा सका तो पुलिस ने सर्दी की ठंडी रात में उनके कम्बल ज़ब्त कर लिए। इसके अलावा, आसपास के सार्वजनिक शौचालयों में भी ताले जड़वा दिए। औरतों ने कड़ाके की ठंड में भी खुले आसमान के नीचे धरना जारी रखा। सुबह होते-होते प्रशासन द्वारा धरनास्थल को किले में तब्दील कर दिया गया।
अगले दिन सुबह बड़ी संख्या में औरतों की बढ़ती मौजूदगी को देख कर प्रसाशन ने सख्ती बढ़ा दी। घंटाघर के आसपास पुरुषों के खड़े होने पर भी पाबंदी लगा दी। प्रशासन यतीन नहीं रुका, उसने पार्किंग स्थल पर खड़ी गाड़ियों को चालान करना शुरू कर दिया। जब बात फिर भी नहीं बनी तो पुलिस ने लाठीचार्ज की। अंत में प्रशासन ने धारा 144 का सहारा लेते हुए लखनऊ में इसे लागु कर दिया।
16 मार्च को प्रदर्शनकारियों के खिलाफ IPC की धारा 145, 147, 149, 188, 283, 353, 427, 505 के तहत केस दर्ज हुआ
पुलिस प्रश्न ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ 16 मार्च को करीब 18 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 145, 147, 149, 188, 283, 353, 427, 505, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा 7 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (संशोधन) कानून 2008 के अंर्तगत मुकदमें दर्ज किए।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संयुक्त सचिव मधु गर्ग ने कहा कि “सिर्फ एक बहाना है धरना खत्म कराने के लिए, लेकिन सावधानी बरतना भी जरूरी है। कम औरतों के साथ सांकेतिक धरना चलता रहना चाहिए। बाकी औरतें घर-घर जा कर अभियान चलाएं और वायरस खत्म होने के बाद प्रदर्शन का फिर विस्तार किया जाए।”
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